Saturday, October 30, 2010

shahar

अभी आसमाँ को छूती नहीं है, इमारतें यहाँ
अभी धुप ज़मी पर, बिखरती हर जगह है यहाँ !!
अपनी हद से, अभी छुटा नहीं है शहर
कुछ इंसानों ही की भीड़ अभी दिखती है यहाँ !!
एक दुसरे को पहचानते हैं लोग, जो घरों में रहते हैं
अभी ज़िंदा है, के रिश्तों की मौत हुई नहीं है यहाँ !!
ये शहर मेरा अपना है, मेरे निशाँ हैं यहाँ
इसकी मिट्टी-मिट्टी से पूछो के मेरा माज़ी भी कितना जवाँ है यहाँ !!

@anand

किसी का दिल जो चाहे, तो अपनी सूरत बदल कर देखो !

क्या नहीं रोता है दिल किसी का, कभी उसकी हँसी मैं हँस कर देखो !!

अपने जिस्म को छोड़ो, उसके शरीर मैं जा कर देखो !

क्या नहीं होतें हैं लोग दुश्मन किसी के, कभी उसको दोस्त बना कर देखो !!

जो कभी घबराओ अपने साए से भी, दो घड़ी उसके पहलू मैं बिताकर देखो !

क्या नहीं होता हैं तन्हा कोई जग मैं , कभी महफिलों मैं बेमन भी जा कर देखो !!

-anand

Wednesday, September 29, 2010

मुझको तलाश है अपनी
गर मैं मिल जाऊं तुमको कहीं
तो मुझको खबर करना !
मेरा पता मेरा जिस्म नहीं
मेरी रूह्ह है !
जिस्म तो एक उम्र की सजा भर है बस
जीने की ख्वाहिश तो रूह्ह ही मैं रहती है !!

Tuesday, September 28, 2010

आओ इस दफा लड़ें इतना,

के दिल की हर नफरत निकल जाए !

जो वो इबादत की जमीं है अगर,

तो हर सजदे मैं वहाँ फुल खिल जाए !!

दिलों मैं रंजिशें रखकर,

हम जी नहीं सकते !

मैं ईसा भी हो जाऊं अगर,

जो किसी के सलीब मिल जाए !!

यह मुल्क मुहब्बत का है,

यहाँ मुहब्बत ही को पलने दो !

बर्बाद कर दो वो मंजर अगर,

जो बिज वहाँ नफरत का मिल जाए !!

तुम हाथों को जोड़ते हो,

तो मैं फैलाता हूँ उनको दुआओं मैं अपनी !

मैं अपना मजहब ही बदल दूं अगर,

इक मुहब्बत से कोई गले तो मिल जाए !!

नाम उसका कुछ तुम्हारा है पुकारा,

कुछ हमारा पुकारा है !

मूरत एक ही दिखती है अगर,

जो नमाजें आरती से मिल जाए !!

"आम आदमी की दौलत पर खेल" -

जी मे आए है जिसके, नोचा करे है तुझको !

यह मुल्क भी, गुज़रे ज़माने की दिल्ली हो गई है !!

क्या खेल चल रहें हैं , अपनी ज़मीन पर !

खुद ही हँसते हैं, और अपनी खिल्ली हो गई है !!

हर सिम्त बद इन्तजामी का, झांकता है चेहरा !

रेशम के कर के पैबंद, निजाम के तसल्ली हो गई है !!

सोचे बड़े सयाने , थे लोग हम लगाए !

ये क्या हुआ के सूरते सब, शेखचिल्ली हो गई है !!

Tuesday, August 31, 2010

kirayedar - ek nazm

जिस्म मैं एक कमरा ख़ाली था,
मैंने किराये पर चड़ा दिया !
एक फितरती शायर को,
किरायेदार बना लिया !
चंद गजलें किराये में ले लेता हूँ, महिना !
कोई नज़्म भी मिल जाती है कभी !
अच्छी कमाई होने लगी है,
वर्ना हाल फकीरों सा था इन दिनों अपना !!
-anand

Monday, August 30, 2010

kabhi

बड़ी जल्दी मैं कोई सौदा मत किया करो,
अरसा कीमतें चुकानी पड़ती है कभी !!
भूल कर भी किसी सच्चे दिल को दुखाया न करो,
ता उम्र किसी की तकलीफ कोसती रहती है कभी !!
मैं भी तुम जैसा ही हूँ कभी मुझसे भी दोस्ती करो,
तन्हा तन्हा अकेले ज़िन्दगी गुजारनी पड़ती है कभी !!
अपनी आँख के आसूँओं से किसी के गम को नम किया करो,
दुनिया है, हर एक को सहारे की ज़रूरत पड़ती है कभी !!
शोहरत के साथ दुआओं मैं सलीके की मिन्नत भी किया करो,
शख्सियत सवार्नें के लिए दौलत भी कम पड़ती है कभी !!
- anand

Thursday, May 20, 2010

Noor Sahab Ki Zamin main

Sher kehte Ho, Ya ki Qatl Karte Ho,

Kalam Tum-hari Khanzar Maloom Hoti hai...



- Anand