Wednesday, September 29, 2010

मुझको तलाश है अपनी
गर मैं मिल जाऊं तुमको कहीं
तो मुझको खबर करना !
मेरा पता मेरा जिस्म नहीं
मेरी रूह्ह है !
जिस्म तो एक उम्र की सजा भर है बस
जीने की ख्वाहिश तो रूह्ह ही मैं रहती है !!

Tuesday, September 28, 2010

आओ इस दफा लड़ें इतना,

के दिल की हर नफरत निकल जाए !

जो वो इबादत की जमीं है अगर,

तो हर सजदे मैं वहाँ फुल खिल जाए !!

दिलों मैं रंजिशें रखकर,

हम जी नहीं सकते !

मैं ईसा भी हो जाऊं अगर,

जो किसी के सलीब मिल जाए !!

यह मुल्क मुहब्बत का है,

यहाँ मुहब्बत ही को पलने दो !

बर्बाद कर दो वो मंजर अगर,

जो बिज वहाँ नफरत का मिल जाए !!

तुम हाथों को जोड़ते हो,

तो मैं फैलाता हूँ उनको दुआओं मैं अपनी !

मैं अपना मजहब ही बदल दूं अगर,

इक मुहब्बत से कोई गले तो मिल जाए !!

नाम उसका कुछ तुम्हारा है पुकारा,

कुछ हमारा पुकारा है !

मूरत एक ही दिखती है अगर,

जो नमाजें आरती से मिल जाए !!

"आम आदमी की दौलत पर खेल" -

जी मे आए है जिसके, नोचा करे है तुझको !

यह मुल्क भी, गुज़रे ज़माने की दिल्ली हो गई है !!

क्या खेल चल रहें हैं , अपनी ज़मीन पर !

खुद ही हँसते हैं, और अपनी खिल्ली हो गई है !!

हर सिम्त बद इन्तजामी का, झांकता है चेहरा !

रेशम के कर के पैबंद, निजाम के तसल्ली हो गई है !!

सोचे बड़े सयाने , थे लोग हम लगाए !

ये क्या हुआ के सूरते सब, शेखचिल्ली हो गई है !!