जिस्म मैं एक कमरा ख़ाली था,
मैंने किराये पर चड़ा दिया !
एक फितरती शायर को,
किरायेदार बना लिया !
चंद गजलें किराये में ले लेता हूँ, महिना !
कोई नज़्म भी मिल जाती है कभी !
अच्छी कमाई होने लगी है,
वर्ना हाल फकीरों सा था इन दिनों अपना !!
-anand
Tuesday, August 31, 2010
Monday, August 30, 2010
kabhi
बड़ी जल्दी मैं कोई सौदा मत किया करो,
अरसा कीमतें चुकानी पड़ती है कभी !!
भूल कर भी किसी सच्चे दिल को दुखाया न करो,
ता उम्र किसी की तकलीफ कोसती रहती है कभी !!
मैं भी तुम जैसा ही हूँ कभी मुझसे भी दोस्ती करो,
तन्हा तन्हा अकेले ज़िन्दगी गुजारनी पड़ती है कभी !!
अपनी आँख के आसूँओं से किसी के गम को नम किया करो,
दुनिया है, हर एक को सहारे की ज़रूरत पड़ती है कभी !!
शोहरत के साथ दुआओं मैं सलीके की मिन्नत भी किया करो,
शख्सियत सवार्नें के लिए दौलत भी कम पड़ती है कभी !!
- anand
अरसा कीमतें चुकानी पड़ती है कभी !!
भूल कर भी किसी सच्चे दिल को दुखाया न करो,
ता उम्र किसी की तकलीफ कोसती रहती है कभी !!
मैं भी तुम जैसा ही हूँ कभी मुझसे भी दोस्ती करो,
तन्हा तन्हा अकेले ज़िन्दगी गुजारनी पड़ती है कभी !!
अपनी आँख के आसूँओं से किसी के गम को नम किया करो,
दुनिया है, हर एक को सहारे की ज़रूरत पड़ती है कभी !!
शोहरत के साथ दुआओं मैं सलीके की मिन्नत भी किया करो,
शख्सियत सवार्नें के लिए दौलत भी कम पड़ती है कभी !!
- anand
Subscribe to:
Posts (Atom)