Tuesday, August 31, 2010

kirayedar - ek nazm

जिस्म मैं एक कमरा ख़ाली था,
मैंने किराये पर चड़ा दिया !
एक फितरती शायर को,
किरायेदार बना लिया !
चंद गजलें किराये में ले लेता हूँ, महिना !
कोई नज़्म भी मिल जाती है कभी !
अच्छी कमाई होने लगी है,
वर्ना हाल फकीरों सा था इन दिनों अपना !!
-anand

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