जी मे आए है जिसके, नोचा करे है तुझको !
यह मुल्क भी, गुज़रे ज़माने की दिल्ली हो गई है !!
क्या खेल चल रहें हैं , अपनी ज़मीन पर !
खुद ही हँसते हैं, और अपनी खिल्ली हो गई है !!
हर सिम्त बद इन्तजामी का, झांकता है चेहरा !
रेशम के कर के पैबंद, निजाम के तसल्ली हो गई है !!
सोचे बड़े सयाने , थे लोग हम लगाए !
ये क्या हुआ के सूरते सब, शेखचिल्ली हो गई है !!
No comments:
Post a Comment