Saturday, October 30, 2010

shahar

अभी आसमाँ को छूती नहीं है, इमारतें यहाँ
अभी धुप ज़मी पर, बिखरती हर जगह है यहाँ !!
अपनी हद से, अभी छुटा नहीं है शहर
कुछ इंसानों ही की भीड़ अभी दिखती है यहाँ !!
एक दुसरे को पहचानते हैं लोग, जो घरों में रहते हैं
अभी ज़िंदा है, के रिश्तों की मौत हुई नहीं है यहाँ !!
ये शहर मेरा अपना है, मेरे निशाँ हैं यहाँ
इसकी मिट्टी-मिट्टी से पूछो के मेरा माज़ी भी कितना जवाँ है यहाँ !!

@anand

किसी का दिल जो चाहे, तो अपनी सूरत बदल कर देखो !

क्या नहीं रोता है दिल किसी का, कभी उसकी हँसी मैं हँस कर देखो !!

अपने जिस्म को छोड़ो, उसके शरीर मैं जा कर देखो !

क्या नहीं होतें हैं लोग दुश्मन किसी के, कभी उसको दोस्त बना कर देखो !!

जो कभी घबराओ अपने साए से भी, दो घड़ी उसके पहलू मैं बिताकर देखो !

क्या नहीं होता हैं तन्हा कोई जग मैं , कभी महफिलों मैं बेमन भी जा कर देखो !!

-anand