आओ इस दफा लड़ें इतना,
के दिल की हर नफरत निकल जाए !
जो वो इबादत की जमीं है अगर,
तो हर सजदे मैं वहाँ फुल खिल जाए !!
दिलों मैं रंजिशें रखकर,
हम जी नहीं सकते !
मैं ईसा भी हो जाऊं अगर,
जो किसी के सलीब मिल जाए !!
यह मुल्क मुहब्बत का है,
यहाँ मुहब्बत ही को पलने दो !
बर्बाद कर दो वो मंजर अगर,
जो बिज वहाँ नफरत का मिल जाए !!
तुम हाथों को जोड़ते हो,
तो मैं फैलाता हूँ उनको दुआओं मैं अपनी !
मैं अपना मजहब ही बदल दूं अगर,
इक मुहब्बत से कोई गले तो मिल जाए !!
नाम उसका कुछ तुम्हारा है पुकारा,
कुछ हमारा पुकारा है !
मूरत एक ही दिखती है अगर,
जो नमाजें आरती से मिल जाए !!
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