Tuesday, September 28, 2010

आओ इस दफा लड़ें इतना,

के दिल की हर नफरत निकल जाए !

जो वो इबादत की जमीं है अगर,

तो हर सजदे मैं वहाँ फुल खिल जाए !!

दिलों मैं रंजिशें रखकर,

हम जी नहीं सकते !

मैं ईसा भी हो जाऊं अगर,

जो किसी के सलीब मिल जाए !!

यह मुल्क मुहब्बत का है,

यहाँ मुहब्बत ही को पलने दो !

बर्बाद कर दो वो मंजर अगर,

जो बिज वहाँ नफरत का मिल जाए !!

तुम हाथों को जोड़ते हो,

तो मैं फैलाता हूँ उनको दुआओं मैं अपनी !

मैं अपना मजहब ही बदल दूं अगर,

इक मुहब्बत से कोई गले तो मिल जाए !!

नाम उसका कुछ तुम्हारा है पुकारा,

कुछ हमारा पुकारा है !

मूरत एक ही दिखती है अगर,

जो नमाजें आरती से मिल जाए !!

No comments:

Post a Comment